"चैन की तो आपकी गुजर रही है, वकीलनीजी।" "क्यों डॉक्टर पति अच्छे नहीं हैं क्या?" "डॉक्टर साब तो बस डॉक्टर ही हैं। पर आपको तो पहलवान मिल गए।" वह हँसकर बोली। सब भी हँस गए। "ये कृपा तो आपकी ही हुई है।" साधना बोली। "आप सुनाइए साहब बहादुर। अब तो कोई नई मेमसाहब नहीं पाल ली है।" मोहन की ओर देखकर वह बोली। "जी हाँ, हैं क्यों नहीं।" मोहन नर्मदा की ओर देखकर बोला, "क्या ये मेमसाहब से कम हैं?" "पर मैंने आपको विलायत जाने को बीस हजार दिलवाए थे, वह तो आप पूरे ही हजम कर गए।" नर्मदा ने हँसकर कहा। सभी हँस पड़े। "अब तो पहलवान साहब के भाग खुल गए।" शांति ने राजेंद्र पर व्यंग्य कसा। "आपकी बला से।" राजेंद्र ने मुसकराकर कहा। "ये सब जो हुआ बहनजी, सब भाग्य का खेल है।" नर्मदा ने साधना से कहा। -इसी पुस्तक से सामाजिक जीवन के परिवेश में नजदीक से झाँककर समाज की विडंबनाओं और शुचिताओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत करती मनोरंजन से भरपूर कहानियाँ।